Wednesday 10 August 2011

aajadi ke parwano ki
tum sun lo aaj kahani.
mout ko gale lagakar unhone
bharat ki bachayi nishani.
sabne manayi diwali to
wo khele khun ki holi.
bharat ko dilwane aajadi
chali thi diwano ki toli.
parwane ko jese
shama se pyar ho jata hai.
janta hai marna hai phir bhi
shama ke pas wo jata hai.
aajadi ke diwano ki halat bhi
kuch esi thi .
aajadi to unki khatir
maa ke jesi thi
phir kon beta apni maa ko
bhul pata hai.
maa ko paane ko jaan ki
baaji lagata hai
sadharan sache, nadan the wo
wo the prem pujari.
pani jab sir se gujra
tab bane wo krantikari.
teis sal ka bhagat singh
tha bilkul nadan.
hanste hanste fhanshi jhula
liya mout ko tham.
rajguru,sukhdev ne bhi
di goron ko khub chunauti.
fanshi gale lagakar
phir de di apni aahuti.
raajput maharana partap ne bhi
khub naam kamaya tha.
chetak par hokar sawar
angrejon ko bhgaya tha.
ek din chetak ne jab
sath maharana ka chora.
baad uske maharana ne bhi
duniya se nata tora.
jhanshi ki rani ne bhi
rodar rup apnaya tha .
kabhi durga kabhi kali
kabhi chandi roop apnaya tha.
rani ne purushon ka
khub sath nibhaya tha.
kandhe se kandha milakar
aajadi ka deep jalaya tha.
sabarmati ke sant ne bhi
khub kamal kiya tha.
hinsha chor ahinsha ka
rasta bemishal diya tha.
Kabhi styagrah kabhi dandi march
kabhi ashyoog andolan kiya tha.
angrejo ke chakke chudaye
or rahna duswaar kiya tha.
e rastrpita hum tumko
kabhi na bhula payenge.
teri tasweer ko apne
seene me hamesha bsayenge.
maaf karna ham sabko
agar ho jaye koi nadani.
aajadi ke parwno ki tum
sun lo aaj tum kahani.
mout ko gale lagakar
bharat ki bachayi nishani.
e bharat ke logo
mat bhulna unki balidani.
bharat mata ke charno me
hai ye sabse badi kurbani.

बहुत दिनों से ब्लॉग से दूर रहा हूँ में किसी करनवास
इतने दिनों में मेने महसूस किया की कहीं कुछ छोर दिया है
मेने..
लेकिन अब में थोडा फ्री हुवा हूँ और ब्लॉग जगत को अपना
योगदान देने के लिए फिर से तियार hun


आजादी के परवानो की
तुम सुन लो आज कहानी.
मौत को गले लगाकर उन्होंने
भारत की बचायी निशानी .
सबने मनाई दिवाली तो
वो खेले खून की होली .
भारत को दिलवाने आजादी
चली थी दीवानों की टोली .
परवाने को जेसे
शमा से प्यार हो जाता है .
जiनता है मरना है फिर भी
शमा के पास वो जाता है .
आजादी के दीवानों की हालत भी
कुछ इसी थी .
आजादी तो उनकी खातिर
माँ के जेसी थी
फिर कोण बेटा अपनी माँ को
भूल पता है .
माँ को पाने को जान की
बाजी लगता है
साधारण सचे , नादाँ थे वो
वो थे प्रेम पुजारी .
पानी जब सर से गुजरा
तब बने वो क्रन्तिकारी .
तेईस साल का भगत सिंह
था बिलकुल नादाँ .
हँसते हँसते फ्हंशी झुला
लिया मौत को थम .
राजगुरु ,सुखदेव ने भी
दी गोरों को खूब चुनौती .
फंशी गले लगाकर
फिर दे दी अपनी आहुति .
राजपूत महाराणा परताप ने भी
खूब नाम कमाया था .
चेतक पर होकर स्वर
अंग्रेजों को भगाया था .
एक दिन चेतक ने जब
साथ महाराणा का चोर .
बाद उसके महाराणा ने भी
दुनिया से नाता तोरा .
झंशी की रानी ने भी
रोडर रूप अपनाया था .
कभी दुर्गा कभी कलि
कभी चंडी रूप अपनाया था .
रानी ने पुरुषों का
खूब साथ निभाया था .
कंधे से कन्धा मिलकर
आजादी का दीप जलाया था .
साबरमती के संत ने भी
खूब कमल किया था .
हिंशा छोर अहिन्षा का
रास्ता बेमिशाल दिया था .
कभी सत्याग्रह कभी डंडी मार्च
कभी अश्यूग आन्दोलन किया था .
अंग्रेजो के चक्के चुदाये
और रहना दुस्वार किया था .
ए रास्तेर्पिता हम तुमको
कभी न भुला पाएंगे .
तेरी तस्वीर को अपने
सीने में हमेशा बसायेंगे .
माफ़ करना हमें सबको
अगर हो जाये कोई नादानी .
आजादी के पर्व्नो की तुम
सुन लो आज तुम कहानी .
मौत को गले लगाकर
भारत की बचायी निशानी .
ए भारत के लोगो
मत भूलना उनकी बलिदानी .
भारत माता के चरणों में
है ये सबसे बड़ी क़ुरबानी .

जय हिंद जय भारत

Tuesday 2 August 2011

फोजी की छुट्टी

1 ये फौजी निकल चुका है अपने घर के लिए ,
अपने परिवार से अरसे बाद मिलने के लिए .
माँ भी कब से इन्तजार कर रही है मेरा ,
अब रुकना कठिन है मेरे लिय्रे .
जरुरी नहीं की हर होली ,दीवली पर मैं घर पर हूँ ,
जब मैं घर पर हूँ तभी होली दीवली है मेरे लिए .
2 कितना खुशी का आलम होगा ,
जब ये फौजी घर पर होगा .
माँ मिलेगी तो गले से लगाएगी ,
फिर उसकी भी रुलाई फूट जाएगी .
कहेगी , इतने दिनों बाद क्यूँ आता है ?
क्या एक बार भी हमारा ध्यान नहीं आता है ?

फिर ये फौजी भी भावुक हो जायेगा ,
माँ के गले लग जायेगा .....
3 फिर से कई यादे ताज़ा हो जाएँगी ,
दोस्तों की भरमार भी ज्यादा हो जाएगी .
फिर वही मटरगस्ती का खेल शुरु होगा ,
घर पर आकर फिर धामा चौकड़ी भी जरुर होगी .
में फौजी नौजवान हूँ हट्टा कट्टा हूँ ,
पर माता पिता के लिए अभी बच्चा हूँ .
4 फिर जैसे जैसे छुट्टियाँ खत्म होंगी ,
दूर जाने के गम फिर आँखे नम होंगी .
सामान के साथ माँ ढेर सरे लड्डू बांध देगी ,
जाते जाते फिर से एक सीख देगी ,
कि सफ़र में किसी अंजान के हाथों से मत खाना ,
और अगली बार बेटा कमज़ोर होकर मत आना ..|