Saturday, 28 December 2013

रोज सोचता हूँ की तेरे पहलु में आकर रात गुजारूं पर कम्बखत मेरे मूल्क के हालत मुझे सोने नहीं देते बहुतो ने की कोसिस इस गुल को गुलजार करने की पर कुछ दॆश्द्रॊहि बिज प्यार के यहाँ बोने नहीं देते जाट गुज्जर पंडित छोड़कर हिन्दू कहलाने की कोसिस है पर ये सेकुलर कुत्ते हम हिन्दुवो एक होने नहीं देते रोज सोचता हूँ की तेरे पहलु में आकर रात गुजारूं पर कम्बखत मेरे मूल्क के हालत मुझे सोने नहीं देते निशांत बालियाँ ( साजन आवारा)

Friday, 13 December 2013

एक बार फिर से

आया हूँ आप लोगो से मिलने एक बार फिर से सोये हुये लोगों को जगाने एक बार फिर से बहुत दिनों से न कोई कविता न गजल न शायरी लिखी अपना हाल ऐ दिल सुनाने आया हूँ एक बार फिर से कुछ दोस्त जो मायूस थे इस आवारा की वापसी को लेकर उन दॉस्तो को हसाने आया हूँ एक बार फिर से और वो जिनको हुयी थी खुसी मेरे जाने को लेकर उनको भी सताने आया हूँ एक बार फिर से। जय हिन्द साजन आवारा