Sunday 22 May 2011

USKI DOLI KHUD SAJA KE AAYA HUN.

PK शर्मा भाई का सुक्रिया अदा करना चाहूँगा क्यूंकि उन्होंने कहा है की वो मेरी रचनाओ को हिंदी में तब्दील कर दिया करेंगे.. PK भाई मेरी मदद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ..
यहाँ पर जो प्यार मिल रहा है मुझे बहुत अछा लग रहा है .
( यहाँ आप लोगो से बहुत कुछ सीखूंगा.
अंधेरो में भी उजाले की तरह दिखूंगा .
ये मत समझना की वक्त के साथ नहीं चलूँगा,
जब तक सांस है तब तक लिखूंगा )

अब पेस है एक नयी रचना...

कदम लडखडा रहे हैं पर में होश में हूँ ,
ये मत समझना की चढ़ा के आया हूँ .
अरे में तो अपनी बर्बादी के जश्न में ,
सब महफील सजा के आया हूँ .
मेरे चाहने वालो की कमी नहीं है,
में तो एक सखस को भुला के आया हूँ .
भूले से भी याद न आ जाये उस बेवफा की ,
तमाम यादों को उसकी में आज जला के आया हूँ .
मेरे दर्द को ज़माने की हवा न लगे,
में तो अपने जख्मो को छुपा के आया हूँ .
इससे ज्यादा बेबसी और क्या होगी,
उसकी डोली को खुद में सजा के आया हूँ .
एक तस्वीर ही है मेरी आँखों में उसकी ,
कोई देख न ले इसलिए नजरे झुका के आया हूँ .

22 comments:

Amrita Tanmay said...

achchhe jajbaat ki khubsurat baangi....

पूनम श्रीवास्तव said...

nishant ji
aapki rachna jaise har lute hue juuari ki tarah hai jo apna sabkuchh lut jaane ke baad bhi duniya ko jahir na ho paye aapka dard
isi koshish me laga hua hai. aur apni barbadi ka tamasha apne hi andar smet lena chahta hai .
bahut sundar v bhav bhini prastuti
marm ko chhoo gai
bahut bahut badhai
poonam

Anonymous said...

Kya baat hai nishant bhai maar hi daaloge..........badahi

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

अंतर्वेदना को शब्दांकित करते सुन्दर भाव...

Anonymous said...

kahan ho bhai aajkal
blog par nah aa rahe naraz ho kya bhai,agar anjane me koi galti ho gayi ho to humka maaf kar dena

Anonymous said...

kahan ho bhai aajkal
blog par nah aa rahe naraz ho kya bhai,agar anjane me koi galti ho gayi ho to humka maaf kar dena

अविनाश मिश्र said...

दिल लुट सा गया आपकी कविता पढ़ कर... आँखे नाम कर दी आपने ...

बहुत सुन्दर...

ZEAL said...

Very emotional creation !

Unknown said...

very touching... lovely !
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - अज्ञान

हरकीरत ' हीर' said...

एक तस्वीर ही है मेरी आँखों में उसकी ,
कोई देख न ले इसलिए नजरे झुका के आया हूँ .

वाह वाह .....
हमने तो देख ली जनाब .....:))

संध्या शर्मा said...

इससे ज्यादा बेबसी और क्या होगी,
उसकी डोली को खुद में सजा के आया हूँ .
एक तस्वीर ही है मेरी आँखों में उसकी ,
कोई देख न ले इसलिए नजरे झुका के आया हूँ ...

वैसे तो पूरी रचना ही लाजवाब है पर अंतिम चार पंक्तियों ने तो गज़ब ही ढा दिया.... सीधे दिल में उतर गई..... बहुत सुन्दर रचना....

जीवन और जगत said...

बढि़या रचना। आपमें एक अच्‍छा कवि छिपा हुआ है। उसे बाहर लाने के लिए लगातार लिखते रहें। हम आपका उत्‍साह बढ़ाते रहेंगे।

sm said...

beautiful poem

संजय भास्‍कर said...

बहुत बहुत बहुत सुन्दर...

संजय भास्‍कर said...

कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 17 दिनों से ब्लॉग से दूर था
इसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !

SAJAN.AAWARA said...

AAP LÔGÔ KA BAHUT BAHUT SUKRIYA. . . . ACHA LAGTA HAI JAB AAP LOG APNI PARTIKIRIYA JAHIR KARTE HAIN.0.0. . . .
JAI HIND JAI BHARAT

Urmi said...

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती!

केवल राम said...

कदम लडखडा रहे हैं पर में होश में हूँ ,
ये मत समझना की चढ़ा के आया हूँ .

वाह क्या बात है ...सुंदर भावाभियक्ति .....!

Unknown said...

मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - सम्पूर्ण प्रेम...(Complete Love)

Amrita Tanmay said...

exam. men safal hon . dheron shubhkamna....

Rakesh Kumar said...

मेरे दर्द को ज़माने की हवा न लगे,
में तो अपने जख्मो को छुपा के आया हूँ .
इससे ज्यादा बेबसी और क्या होगी,
उसकी डोली को खुद में सजा के आया हूँ .

खूबसूरत भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
आप छुपा भी रहें हैं और बता भी रहे हैं.
वाह! क्या बात है.

मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

Madan tiwary said...

यार ये जिंदगी साली अजीब है। शायद बहुतों के साथ यही होता है। कभी मैं भी गुजरा था इस दौर से , आज याद आ गई वह डोली और और जिसे विदा किया था। लेकिन हालात भी अजीब होते हैं, अपना घर , बच्चे न जाने क्या -क्या । आज सामने आने पर भी अनजाने हैं। चलो चलता है , दुनिया है न । बस निभाते जाओ निभाते जाओ तबतक जबतक स्वार्थ एक दूजे से हल हो रहा है।