कहने को तो अन्नदाता है किसान।
पूरी दुनिया का पेट भरता है किसान।
हर कदम पर हर धर्म निभाता है किसान।
बच्चो को अपने एक फोजी बनाता है किसान।
सर्दी गर्मी वर्षा मोसम चाहे कुछ भी हो।
दुनिया की दोड़ से अलग फसल उगाता है किसान।
पर जब बात आती है किसान के अधिकारों की।
तो भूल जाते हैं लोग की क्या बला है ये किसान।
आधुनिकता के युग में हर महीने तनख्वाह पाते हैं लोग।
अपना गन्ना बेचकर भी भुगतान नहीं पा रहा है किसान।
कईं कईं साल की पेमेंट ये मिले रोक लेती हैं।
लोग क्या जाने किस तरह उधारी में जीता है किसान।
धरना पर्दर्शन कर जब भी अपना हक मांगने की कोशिस की।
सरकार दमन करती है ऐसे जेसे कोई हैवान है किसान।
जब चारो और से हो जाता है निराश और परेशान।
तब कहीं जाकर आत्महत्या करता है कोई किसान।
फिर भी सरकार के कानो पर जूं नहीं रेंगती।
उपेक्षा के कारण आज तिल तिल मर रहा है किसान।
ना तो ये नाम बचेगा ना बचेगा कोई निसान।
एक दिन आएगा जब दुनिया से मिट जाएगा किसान।
"अब जब भी कोई पूछता है मुझसे की क्या बनू बड़ा होकर?
तब में एक ही बात बतलाता हूँ"
की नेता बनना चाहे गुंडा बनना पर ना बनना तुम किसान।
की नेता बनना चाहे गुंडा बनना पर ना बनना तुम किसान।
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